Re: योगा
कुण्डलिनी जागरण प्राणायाम-
इस प्राणायाम के अभ्यास के लिए पहले की तरह ही सिद्धासन में बैठ जाएं। आसन में बैठने के बाद नाक के दोनों छिद्र से सांस (वायु) अन्दर खींचें। वायु को तब तक अन्दर खींचें जब तक वायु पूर्ण रूप से नाभि में न भर जाएं। सांस अन्दर खींचने के बाद सांस को अपनी क्षमता के अनुसार अन्दर ही रोककर रखें। साथ ही जालन्धर बन्ध लगाएं और मूलबन्ध के द्वारा अपान वायु को ऊपर उठाकर नाभि में मौजूद प्राण वायु से मिलाने की कोशिश करें। अपान वायु को ऊपर की ओर उठाते समय उडि्डयन बन्ध लगाएं। सांस को अन्दर रोककर रखते हुए ही इन तीनों बन्ध को लगाएं। अब सांस को जितनी देर तक रोककर रखना सम्भव हो रोककर रखें। फिर सांस छोड़ने से पहले तीनों बन्धों को खोलकर सांस बाहर निकाल दें (रेचन करें)।
इस तरह इस क्रिया को बार-बार करने से कुण्डलिनी जागरण में जल्द लाभ प्राप्त होता है। इस प्राणायाम के द्वारा वीर्य और प्राण के ऊर्ध्वगमन से बुद्धि तंत्र के बन्द कोष खुलते और मस्तिष्क में सूक्ष्म शक्ति को जानने की शक्ति बढ़ती है, साथ ही शरीर की नस-नस में अत्यंत शक्ति, साहस व पुलक का संचार होने से क्रियाशीलता और उत्फुल्लता का विकास भी होता है।
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खुद हँसों औरों को भी हँसाओ, गम को जिन्दगी से दूर भगाओ,क्यों की हँसना ही जिन्दगी है |
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