Thread: योगा
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Old 14-05-2012, 10:21 AM   #15
~VIKRAM~
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वरुण मुद्रा


परिचय-

वरुण का मतलब जल (पानी) होता है। जल ही जीवन है। जिस तरह हमारे जीने के लिए वायु बहुत जरूरी है उसी तरह पानी भी उतना ही जरूरी है। किसी भी व्यक्ति को अगर कुछ दिन तक भोजन ना मिले तो वो जी सकता है लेकिन अगर उसे 1-2 दिन भी पानी न मिलें तो उसका जीना मुश्किल हो जाता है। जल का गुण होता है तरलता। जल भोजन को तरल बनानें में ही मदद नहीं करता बल्कि उससे कई प्रकार के अलग-अलग तत्वों को निर्माण करता है। अगर शरीर को जल नही मिले तो शरीर सूख जाता है तथा शरीर की कोशिकाएं भी सूखकर बेकार हो जाती है। जल तत्व शरीर को ठंडकपन और सक्रियता प्रदान करता है।

मुद्रा बनाने का तरीका-
हाथ की सबसे छोटी उंगली (कनिष्का) को जल तत्व का प्रतीक माना जाता है। जल तत्व और अग्नि तत्व (अंगूठें) को एकसाथ मिलाने से बदलाव होता है। छोटी उंगली के आगे के भाग और अंगूठें के आगे के भाग को मिलाने से `वरुण मुद्रा´ बनती है।
समय-


इस मुद्रा को सर्दी के मौसम में कुछ समय के लिए ही करें। गर्मी या दूसरें मौसम में इस मुद्रा को 24 मिनट तक किया जा सकता है। वरुण मुद्रा को ज्यादा से ज्यादा 48 मिनट तक किया जा सकता है।

लाभकारी-


इस मुद्रा के नियमित अभ्यास से शरीर का रूखापन दूर होता है।
`वरुण मुद्रा´ को करने से शरीर में चमक बढ़ती है।
इस मुद्रा को करने से खून साफ होता है और चमड़ी के सारे रोग दूर होते है।
`वरुण मुद्रा´ को रोजाना करने से जवानी लंबे समय तक बनी रहती है और बुढ़ापा भी जल्दी नही आता।
ये मुद्रा प्यास को शांत करती है।

विशेष-

एक्यूप्रेशर के मुताबिक बाएं हाथ की सबसे छोटी उंगली शरीर के बाएं हिस्से को प्रतिनिधित्व करती है। दाएं हाथ की सबसे छोटी उंगली शरीर के दाएं भाग का प्रतिनिधित्व करती है। बाएं और दाएं भाग पर असर डालने वाली सबसे छोटी उंगली अग्नि तत्व से प्रभावित होती है। दोनों के दबाव से शरीर का दायां और बायां भाग स्वस्थ और ताकतवर बनता है। इस मुद्रा में अंगूठें से छोटी उंगली की मालिश करने से शक्ति संतुलित होती है। बेहोशी टूट जाती है।

सावधानी-


जिन लोगों को सर्दी और जुकाम रहता है उन्हे वरुण मुद्रा का अभ्यास ज्यादा समय तक नहीं करना चाहिए।
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