Re: ! आशिकाना शायरी !
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Originally Posted by tigerlove
! आशिकाना शायरी !
मौसम है आशिकाना।
ऐ दिल कहीं से उनको।
ऐसे में ढूढ़ लाना।
कहना है की रुत जवा है
लेकिन हम तरस रहे हैं।
काली घटाओ के साए
विरहन को डस रहे हैं।
डर हैं न मार डाले
सावन का क्या ठिकाना।
सूरज कहीं भी जाए।
तुम पर न धुप आए।
तुमको पुँकारते हैं।
इन गेसुओं के साए।
आ जाओ में बना दूँ।
पलको का शामियाना।
मोसम है आशिकाना।
ऐ दिल कहीं से उनको ।
ऐसे में ढूढ़ लाना,
फिरते हैं हम अकेले।
बाहों में कोई लेले।,
आख़िर कोई कहाँ तक।
तन्हाई से खेले।
दिल हो गई हैं जालिम।
रातें हैं कातिलाना।
यह रात ये खामोशी।
यह खवाब से नज़ारे।
जुगनू है या जमीं पे।
या उतरे हुए हैं तारे।
बेखाब मेरी आँखें।
मदहोश है जमना।
मौसम है आशिकाना।
ऐ दिल कहीं से उनको ।
ऐसे में ढूढ़ लाना।
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वाह भाई वाह
क्या बात है
इस गीत को और मीना जी के दर्द को समझना भी बड़ा रहस्य मई है
वेस्ही इस गीत में दर्द की इन्तहां को कितने मासूम तरीके से पिरोया गया है जो गूढ़ अर्थ वाला ही समझ सकता है
और रही मीना जी की बात तो
उन का ही गाना उन पे कितना फिट है देखें
" ना जावो सैयां चुदा के बैयाँ
कसम तुम्हारी में रो पडूँगी "
और अभी एक एक कर के उन का हाथ छोड़ छोड़ कर चले गए और रह गयीं बस मीना जी और उन की तन्हैयाँ
सलाम मीना जी
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तोडना टूटे दिलों का बुरा होता है
जिसका कोई नहीं उस का तो खुदा होता है
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