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राहत कार्यों में भूमिका निभा रहे हैं बौद्ध भिक्षु
टोक्यो। जापान में 2011 में आए भूकंप और सुनामी आपदाओं के बाद बौद्ध भिक्षुओं ने अलग-अलग माध्यमों से राहत कार्यों में भाग लिया और लोगों को शांति पहुंचाने के प्रयास किए। उनका योगदान अभी भी जारी है। भूकंप और सुनामी के कारण फुकुशिमा परमाणु संयंत्र से विकिरण का खतरा सामने आया था। फुकुशिमा प्रीफेक्चर के निहोम्मत्सू में स्थित शिंगयोजी मंदिर के उपप्रमुख पुजारी मिचिनोरी ससाकी ने दान में मिले पैसों और दूसरे कोषों से उपकरण खरीदे थे जिनका प्रयोग खाद्य पदार्थों में रेडियो विकिरण की जांच के लिए किया गया। भिक्षुओं ने लोगों को मानसिक शांति पहुंचाने के लिए भी सभाओं का आयोजन किया। ऐसी सभाएं अभी भी आयोजित की जा रही हैं। अप्रेल में टोक्यो के गिंजा जिले में महिलाएं युवा भिक्षुओं की एक ऐसी ही चर्चा सभा में शामिल हुई। इस सभा में धर्म, जीवन और मृत्यु और कई दूसरे मुद्दों पर चर्चा की गई। इन्हीं महिलाओं में से एक आर्ट गैलरी की मालकिन 30 युकारी तोरी ने कहा कि पिछले साल भूकंप के बाद उन्होंने एक भिक्षु से बात की और उन्हें शांति का अनुभव हुआ। भूकंप और सुनामी के बाद से इस तरह के सत्र नियमित तौर पर आयोजित किए जा रहे हैं। इनमें तीन से चार भिक्षु शामिल होते हैं जिनकी उम्र 20 से 30 साल के बीच होती है। इस सभाओं में शामिल होने वाले लोगों में अधिकतर औरतें होती हैं। इस तरह की चर्चाओं में अब तक 600 से ज्यादा लोग शामिल हो चुके हैं। तोरी ने कहा कि इस तरह की चर्चाएं खासी लोकप्रिय हो रही हैं क्योेंकि लोगों को लगता है कि भिक्षु उनके हर तरह के प्रश्नों पर चर्चा करते हैं। चर्चा में शामिल होने वाली एक 39 वर्षीय महिला ने कहा कि मुझे लगता है कि मुझे यहां पहले आना चाहिए था। वह आपदाओं के बाद दुखी और चिंतित रहने लगी थी। 37 वर्षीय बौद्ध भिक्षु यूजेन हिराई ने कहा कि किसी ने उनसे मृत्यु के भय से सम्बंधित सवाल किए। इसके जवाब में उन्होंने कहा कि मनुष्य अकेले जन्म लेता है और अकेले मरता है। इस वजह से हमें नियति का आभारी होना चाहिए कि वह हमें दूसरे लोगों से मिलाती है।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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