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प्रेम, प्रणय और धोखा
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16-11-2010, 11:31 PM
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6
jai_bhardwaj
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Re: प्रेम, प्रणय और धोखा
सब अपनी बीवी को चाहें, सूरत से और शिद्दत से
/
नारि परायी पर जा अटकें, मर्द बेशरम इस आदत से //
अब ऐसे इंसा लाखों हैं, जो हर साल बना दें ताजमहल /
'जय' वैसे अब ना शाहजहाँ, ना वैसी अब मुमताजमहल //
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।
कभी कभी -->
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