Re: श्रीयोगवशिष्ठ
इस प्रकार सबसे मिलकर लक्ष्मण आदि भाई, मन्त्री और वशिष्ठ आदि ब्राह्मण जो बिधि जाननेवाले थे बहुत सा धन और सेना साथ ली और दान पुण्य करते हुए गृह के बाहर निकले । उस समय वहाँ के लोगों और स्त्रियों ने रामजी के ऊपर फूलों और कलियों की माला की, जैसे बरफ बरसती है वैसी ही वर्षा की ओर रामजी की मूर्ति हृदय में धर ली । इसी प्रकार रामजी वहाँसे ब्राह्मणों और निर्धनों को दान देते गंगा, यमुना, सरस्वती आदि तीर्थों में विधिपूर्वक स्नानकर पृथ्वी के चारों ओर पर्यटन करते रहे । उत्तर-दक्षिण, पूर्व और पश्चिम में दान किया और समुद्र के चारों ओर स्नान किया । सुमेरु और हिमालय पर्वत पर भी गये और शालग्राम, बद्री, केदार आदि में स्नान और दर्शन किये । ऐसे ही सब तीर्थस्नान, दान, तप, ध्यान और विधिसंयुक्त यात्रा करते करते एक वर्ष में अपने नगर में आये ।
इति श्रीयोगवाशिष्ठे वैराग्यप्रकरणेतीर्थयात्रावर्णनन्नाम द्वितीयसर्गः ॥२॥
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