Re: श्रीयोगवशिष्ठ
जिस पदार्थ को प्रीतिसंयुक्त लेते थे उस पदार्थ को अब डाल देते हैं और दिन पर दिन दुर्बल होते जाते हैं । जैसे मेघ की बून्द से पर्वत चलायमान नहीं होते वैसे ही वे भी चलायमान नहीं होते, और जो बोलते हैं तो ऐसे कहते हैं कि न राज्य सत्य है, न भोग सत्य है न यह जगत् सत्य है, न भ्राता सत्य है और न मित्र सत्य है । मिथ्या पदार्थों के निमित्त मूर्ख यत्न करते हैं । जिनको सब सत्य और सुखदायक जानते हैं वे बन्धन के कारण हैं । जो कोई राजा अथवा पण्डित इनके पास जाता है तो उनको देखकर कहते हैं ये पशु हैं--आशारूपी फाँसी से बँधे हुए हैं।हे राजन्! जो कुछ योग्य पदार्थ हैं उनको देखकर उनका चित्त प्रसन्न नहीं होता बल्कि देखकर क्रोधवान् होते हैं । जैसे पपीहा मारवाड़ में जावे तो मेघों की बून्दों को नहीं देखता और खेदवान् होता है वैसे ही रामजी विषयों से खदवान् होते हैं । इससे हम जानते हैं कि उनको परमपद पाने की इच्छा है परन्तु कदाचित् उनके मुख से यह नहीं सुना त्याग का भी अभिमान उन्हें कदाचित नहीं है क्योंकि कभी गाते हैं और बोलते हैं तो कहते हैं! हाय मैं अनाथ मारा गया! अरे मूर्खों! तुम संसार समुद्र में क्यों डूबते हो? यह संसार अनर्थ का कारण है । इसमें सुख कदापि नहीं है इससे छूटने का उपाय करो । वह किसी के साथ बोलते नहीं और न हँसते हैं; किसी अति चिन्ता में डूबे हैं ।
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