Re: श्रीयोगवशिष्ठ
उस वासना (तृष्णा) से अनेक जन्म और मरण पाता है, कभी शान्ति नहीं पाता । हे मुनीश्वर! जब लक्ष्मी की प्राप्ति होती है, तब शान्ति के उपजानेवाले गुणों का नाश करती है । जैसे जब तक पवन नहीं चलता तब तक मेघ रहता है और जब पवन चलता है तो मेघ का अभाव हो जाता है वैसे ही लक्ष्मीजी की प्राप्ति होने से गुणों का अभाव होता है और गर्व की उत्पत्ति होती है । हे मुनीश्वर! जो शूर होकर अपने मुख से अपनी बड़ाई न करे सो दुर्लभ है और सामर्थ्यवान् हो किसी की अवज्ञा न करे सब में समबुद्धि राखे सो भी दुर्लभ है वैसे ही लक्ष्मीवान् होकर शुभ गुण हो सो भी दुर्लभ है । हे मुनीश्वर तृष्णारूपी सर्प के विष के बढ़ाने को लक्ष्मीरूपी दूध है उसे पीते, पवनरूपी भोग के आहार करते कभी नहीं अघाता । महामोहरूपी उन्मत्त हस्ती है उसके फिरने का स्थान पर्वत की अटवीरूपी लक्ष्मी है और सद्गुणरूप सूर्यमुखी कमल की लक्ष्मी रात्रि है और भोगरूपी चन्द्रमुखी कमलों की लक्ष्मी चन्द्रमा है और वैराग्यरूप कमलिनी का नाश करनेवाली लक्ष्मी बरफ है और ज्ञानरूपी चन्द्रमा का आच्छादन करनेवाली लक्ष्मी राहु है और मोहरूप उलूक की लक्ष्मी मानो रात्रि है । दुःख रूप बिजली की लक्ष्मी आकाश है और तृणरूपी बेलिको बढ़ाने वाली लक्ष्मी मेघ है ।
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