Re: श्रीयोगवशिष्ठ
जितने दुःख हैं उनका बीज अहंकार है । जब इसका नाश हो तब कल्याण हो । इससे आप उसकी निवृत्ति का उपाय कहिऐ । हे मुनीश्वर! जो वस्तु सत्य है इसके त्याग करने में दुःख होता है और जो वस्तु नाशवान् है और भ्रम से दीखती है उसके त्याग करने में आनन्द है । शान्तिरूप चन्द्रमा के आच्छादन करने को अहंकाररूपी राहु है । जब राहु चन्द्रमा को ग्रहण करता है तब उसकी शीतलता और प्रकाश ढक जाता है वैसे ही जब अहंकार बढ़ जाता है तब समता ढक जाती है । जब अहंकाररूपी मेघ गरजके वर्षता है तब तृष्णारूपी कण्टकमञ्जरी बढ़ जाती है और कभी नहीं घटती । जब अहंकार का नाश हो तब तृष्णा का अभाव हो । जैसे जब तक मेघ है तब तक बिजली है; जब विवेक रूपी पवन चले तब अहंकाररूपी मेघ का अभाव होकर तृष्णारूपी बिजली नष्ट हो जाती है और जैसे जब तक तेल और बाती है तब तक दीपक का प्रकाश है जब तेल बाती का नाश होता है तब दीपक का प्रकाश भी नष्ट हो जाता है वैसे ही जब अहंकार का नाश हो तब तृष्णा का भी नाश होता है ।
|