Re: डार्क सेंट की पाठशाला
सत्य का साथ इस हद तक दें
सेंट स्टीफंस कॉलेज के प्रिंसिपल का पद खाली था। इस पद के लिए चयनकर्ताओं के सामने दो उम्मीदवार के नाम थे। पहले दीनबंधु एंड्रयूज और दूसरे प्रोफेसर सुशील कुमार रूद्र । निश्चित तारीख को दोनों उम्मीदवार साक्षात्कार के लिए उपस्थित हुए। प्रोफेसर रुद्र काफी प्रतिभावान थे और उनकी प्रतिभा से दीनबंधु पहले से ही काफी प्रभावित थे। चयन समिति के प्रमुख लाहौर के लेफ्राय थे। उन्होंने दीनबंधु एंड्रयूज को पास बुलाकर कहा - मिस्टर एंड्रयूज, आप यह तो जानते ही हैं कि चयन आप दोनों में से ही किसी एक का होना है। आप इस प्रतियोगिता में अपने को विजयी समझकर कार्यभार संभालने के लिए पूरी तरह तैयार रहिए, क्योंकि कोई भी भारतीय इस कॉलेज में अनुशासन नहीं रख सकेगा और अन्य प्राध्यापक भी उसे वह सम्मान नहीं दे सकेंगे, जो इस कॉलेज के एक प्रिंसिपल को मिलना चाहिए। इसलिए मेरी राय तो यही है कि प्रिंसिपल पद के लिए किसी अंग्रेज की नियुक्ति ही ठीक रहेगी। इस पक्षपातपूर्ण निर्णय को सुनकर दीनबंधु पहले तो काफी चौंक गए, लेकिन वे चुप न रह सके। वे लेफ्राय की इस रंगभेद की नीति के कारण बुरी तरह से तिलमिला उठे। उन्होंने बेहद नाराजगी भरे शब्दों में लेफ्राय से कहा - सर, यह आप नहीं, आप पर सवार रंगभेद की नीति बोल रही है। क्या आप प्रोफेसर रुद्र की योग्यताओं से परिचित नहीं हैं ? वे भारतीय हैं, तो क्या हुआ, योग्यताओं के तो वे धनी हैं। सब दृष्टि से उनका ही प्रिंसिपल रहना उचित है। उनकी योग्यता ही ऐसी है कि कॉलेज के सभी लोग उनका भरपूर सम्मान करेंगे। यदि आप ऐसा नहीं मानते हैं, तो मैं अभी अपने पद से त्यागपत्र देता हूं और प्रिंसिपल पद की उम्मीदवारी से अपना नाम वापस लेता हूं। जब आप को एक उत्तरदायित्वपूर्ण कार्य करने के लिए समिति में रखा गया है, तो चयन में अपना न्याय दीजिए। शायद आप नहीं जानते कि रंगभेद की दृष्टि से पक्षपातपूर्ण निर्णय देने पर अच्छे परिणामों की आशा नहीं की जा सकती। अंत में प्रिंसिपल के लिए प्रोफेसर रुद्र को चुन लिया गया।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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