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Hamsafar+
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Default Re: "मोहम्मद रफी" - सदी का महानतम गायक

मोहम्मद रफ़ी (24दिसंबर 1924-31 जुलाई 1980) जिन्हें दुनिया रफ़ी या रफ़ी साहब के नाम से बुलाती है, हिन्दी सिनेमा के श्रेष्ठतम पार्श्व गायकों में से एक थे। अपनी आवाज की मधुरता और परास की अधिकता के लिए इन्होंने अपने समकालीन गायकों के बीच अलग पहचान बनाई। इन्हें शहंशाह-ए-तरन्नुम भी कहा जाता था। मोदम्मद रफ़ी की आवाज़ ने अपने आगामी दिनों में कई गायकों को प्रेरित किया। इनमें सोनू निगम,मुहम्मद अज़ीज़ तथा उदित नारायण का नाम उल्लेखनीय है - यद्यपि इनमें से कइयों की अब अपनी अलग पहचान है। 1940 के दशक से आरंभ कर 1980 तक इन्होने कुल 26,000 गाने गाए। इनमें मुख्य धारा हिन्दी गानों के अतिरिक्त ग़ज़ल, भजन, देशभक्ति गीत, क़व्वाली तथा अन्य भाषाओं में गाए गीत शामिल हैं। जिन अभिनेताओं पर उनके गाने फिल्माए गए उनमें गुरु दत्त, दिलीप कुमार, देव आनंद, भारत भूषण, जॉनी वॉकर, जॉय मुखर्जी, शम्मी कपूर, राजेन्द्र कुमार, राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन, धर्मेन्द्र, जीतेन्द्र तथा ऋषि कपूर के अलावे गायक अभिनेता किशोर कुमार का नाम भी शामिल है।

मोहम्मद रफ़ी का जन्म 24 दिसम्बर 1924 को अमृतसर, के पास कोटला सुल्तान सिंह में हुआ था। आरंभिक बाल्यकाल में ही इनका परिवार लाहौर से अमृतसर आ गया। इनके परिवार का संगीत से कोई खास सरोकार नहीं था। जब रफ़ी छोटे थे तब इनके बड़े भाई की नाई दुकान थी, रफ़ी का काफी वक्त वहीं पर गुजरता था। कहा जाता है कि रफ़ी जब सात साल के थे तो वे अपने बड़े भाई की दुकान से होकर गुजरने वाले एक फकीर का पीछा किया करते थे जो उधर से गाते हुए जाया करता था। उसकी आवाज रफ़ी को पसन्द आई और रफ़ी उसकी नकल किया करते थे। उनकी नकल में अव्वलता को देखकर लोगों को उनकी आवाज भी पसन्द आने लगी। लोग नाई दुकान में उनके गाने की प्रशंशा करने लगे। लेकिन इससे रफ़ी को स्थानीय ख्याति के अतिरिक्त और कुछ नहीं मिला। इनके बड़े भाई मोहम्मद हमीद ने इनके संगीत के प्रति इनकी रुचि को देखा और उन्हें उस्ताद अब्दुल वाहिद खान के पास संगीत शिक्षा लेने को कहा। एक बार आकाशवाणी (उस समय ऑल इंडिया रेडियो) लाहौर में उस समय के प्रख्यात गायक-अभिनेता कुन्दन लाल सहगल अपना प्रदर्शन करने आए थे। इसको सुनने हेतु मोहम्मद रफ़ी और उनके बड़े भाई भी गए थे। बिजली गुल हो जाने की वदह से सहगल ने गाने से मना कर दिया। रफ़ी के बड़े भाई ने आयोजकों से निवेदन किया की भीड़ की व्यग्रता को शांत करने के लिए मोहम्मद रफ़ी को गाने का मौका दिया जाय। उनको अनुमति मिल गई और 13 वर्ष की आयु में मोहम्मद रफ़ी का ये पहला सार्वजनिक प्रदर्शन था। प्रेक्षकों में श्याम सुन्दर, जो उस समय के प्रसिद्ध संगीतकार थे, ने भी उनको सुना और काफी प्रभावित हुए। उन्होने मोहम्मद रफ़ी को अपने लिए गाने का न्यौता दिया।
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