Re: डार्क सेंट की पाठशाला
कर्म की शक्ति सबसे बड़ा उपहार
केवल बौद्धिक क्षमताओं के कारण ही सृष्टि में मानव को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। प्रकृति के इस विशिष्ट उपहार के सदुपयोग द्वारा ही मानव मन में उठने वाली बेचैनी, चिंता, भय, दुविधा, कशमकश, संशय, आलस्य, प्रमाद, क्रोध, भ्रान्ति और वासनाओं को नष्ट करने में समर्थ बन जाता है और शुद्ध एवं स्थिर-चित्त होकर उपलब्ध परिस्थितियों का लाभ उठाकर उन्नत भविष्य का निर्माण करता है । उसे यह आत्मानुभूति हो जाती है कि वर्तमान में अकुशलता से कार्य करने पर उसे भविष्य में कोई बड़ी सफलता हाथ नहीं लगने वाली, अत: वह हर कदम पर सावधानी बरतता है कि कहीं विषम परिस्थितियां उसके मानसिक-संतुलन पर हावी न हो जाएं । ऐसा ज्ञानी मनुष्य किसी दिव्य और श्रेष्ठ लक्ष्य पर दृष्टि रखकर अपनी बुद्धि से अपने मन पर नियंत्रण रखकर सब प्रकार के कर्तव्य-कर्म करते हुए भी सदैव आनंदित रहकर अपना समय व्यतीत किया करता है, क्योंकि शुद्ध अन्त:करण वाले उस व्यक्ति के लिए फिर दु:ख मनाने का कोई निमित्त रह ही नहीं जाता। वस्तुत: मनुष्य की कर्म करने की शक्ति ही उसे कुदरत द्वारा दिया गया उसका सबसे बड़ा पुरस्कार और उपहार है, क्योंकि श्रेष्ठ कर्म करने के संतोष और आनंद में वह अपने आप को भूल जाता है, लेकिन सत्य तो यह है कि हममें से अधिकांश लोग विफलता के भय से किसी महान कार्य को अपने हाथ में लेना ही स्वीकार नहीं करते और यदि एक मुट्ठी भर लोग ऐसा साहस करते भी हैं, तो थोड़ा सा विघ्न आने पर इतने निरुत्साहित हो जाते हैं कि अपने कार्य को अधूरा ही छोड़ दिया करते हैं। इसका सबसे बड़ा कारण है हम में मन:स्थिरता का अभाव, क्योंकि हम काम शुरू करते नहीं कि भविष्य में संभावित हानि की कल्पना से स्वयं को भयभीत बना लेते हैं। दरअसल हम यह भूल जाते हैं कि कर्मफल स्वयं कर्म से अलग वस्तु नहीं है। भविष्य का निर्माण वर्तमान में हुआ करता है और हर कर्म की पूर्णता उसके फल में निहित होती है। अत: अपने मन में उठने वाले विक्षेपों पर अपनी बुद्धि से अंकुश लगाकर क्यों न अपना उद्धार स्वयं ही कर लें।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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