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प्रेम में अपने व्यक्तित्व को झुकाना और छोटा करना पड़ता है।
प्रेम में अपवित्र और मैला-कुचैला होना पड़ता है।
भूलना पड़ता है।
इज्जत आबरू, घर-द्वार, कविता-कला, खानपान, जीवन-मरण, ध्येय, उच्चताएँ-महानताएँ सब धूल में मिल जाती हैं। तब मिलता है प्रेम। उससे भी आश्चर्यजनक यह, कि मिलते ही उसका खोना शुरू हो जाता है।
प्रेम क्षणों में ही नवजात, अप्रतिम, अलौकिक और सुंदर रहता है। फिर भी उस प्रेम को पाने के लिए ……
चाँद पर दाग है सभी देख सकते हैं। खुद के लिए आईने दोस्ती निभाते हैं।
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