Re: ब्लॉग वाणी
समोसे के आगे कचौरियों की क्या औकात
-वुसतुल्लाह ख़ान
किस्सा ये है कि लाहौर के लोकल एडमिनिस्ट्रेशन ने एक पुराने कानून के तहत तीन बरस पहले समोसा बनाने वालों को हुक्म दिया कि अगर किसी ने आज के बाद एक समोसा छह रूपए से ज्यादा का बेचा तो उस पर कड़ा जुर्माना किया जाएगा। समोसा बनाने वाले इस हुक्म से डरने के बजाए हाईकोर्ट चले गए मगर हाईकोर्ट ने सरकार और समोसा बनाने वालों की दलील सुनने के बाद फैसला दिया कि चुंकि ख़ुद समोसा इस मुकदमे में अपना बचाव करने के काबिल नहीं लिहाजा ये मुकदमा खारिज किया जाता है लेकिन समोसा साजों ने हार नहीं मानी और इस फैसले के खिलाफ जस्टिस इफ्तिख़ार चौधरी की सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा दिया। अदालत ने फैसला सुनाया कि समोसे पर पंजाब फूड स्टफ कंट्रोल एक्ट 1958 लागू नहीं होता लिहाजा पंजाब हुकुमत समोसे की फिक्स कीमत मुकर्रर नहीं कर सकती। समोसा किस कीमत पर बिकता है ये समोसे और उसे बेचने वाले का मसला है लिहाजा हुकुमत पंजाब आइंदा इस तरह के मामले में अपनी टांग न अड़ाए तो बेहतर है। ये फैसला आने की देर थी कि समोसा मारे ख़ुशी के छह रूपए की सीढ़ी से बारह रूपए की छत पर कूद गया और अब वो पकौड़ों, कचौरियों और जलेबियों को हिकारत से देख रहा है जिनकी कीमत और औकात कोई पूछने वाला नहीं। सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला इस लिहाज से अहम है कि दो-ढ़ाई साल पहले वो चीनी और पेट्रोल की कीमत तय करने के बावजूद अपने फैसले पर अमल नहीं कर सकी। न ही किसी प्रधानमंत्री से राष्ट्रपति आसिफ जरदारी के खिलाफ स्विस कोर्ट को खत लिखवा सकी इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने यकीनन समोसे के हक में फैसला करते हुए सोचा होगा कि चूंकि समोसे को किसी प्रधानमंत्री की तरह पद से नहीं हटाया जा सकता है इसलिए इज्जत इसी तरह बचाई जा सकती है कि समोसे को बरी कर दिया जाए। मेरे एक वकील दोस्त का कहना है कि अदालत के इस फैसले के पीछे जबरदस्त बुद्धिमत्ता है। समोसे के हक में फैसले से साबित हो गया है कि इंसान और समोसा बराबर हैं। ये बात यकीनन अदालत के सामने रही होगी कि समोसा सिर्फ लाहौर या पंजाब का मसला नहीं है बल्कि गालिब, बॉलीवुड, मेंहदी हसन, बासमती चावल और आम की तरह पूरे दक्षिणी एशिया की धरोहर है। ये काबुल से कन्याकुमारी तक, मुल्ला उमर से नरेंद्र्र मोदी तक सबको पसंद है। इसे जितने शौक से मुस्लिम लीग और जमाएते इस्लामी वाले खाते हैं उतने ही शौक से अन्य दलों वाले भी ख़रीदते हैं। सोवियत यूनियन टूट गया, बर्लिन की दीवार गिर गई, इस्लामाबाद में परवेज मुशर्रफ, दिल्ली में अटल बिहारी वाजपेयी और बिहार में लालू यादव सत्ता में नहीं रहे मगर समोसे में आज भी आलू है और कल भी रहेगा। इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने समोसे को कीमत के बंधन से आजाद करके जो ऐतिहासिक फैसला किया है उसकी जबरदस्त सराहना होनी चाहिए। अलबत्ता इंसाफ से जलने वाले कुछ लोग ये जरूर कहते हैं कि इस वक्त पाकिस्तान की अदालतों में ऊपर से नीचे तक तकरीबन दस लाख मुकदमे कई बरस से सुनवाई का इंतजार कर रहे हैं। काश ये मुकदमा करने और लड़ने वाले भी समोसा होते तो कितना अच्छा होता....।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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