Re: ब्लॉग वाणी
आले तक नहीं पहुंच सका लायक आदमी
प्रतिभा कटियार
इश्क को उसने उठाकर जिन्दगी के सबसे ऊंचे वाले आले में रख दिया था। उस आले तक पहुंचने के लिए पहले उसने खुद को पंजों पर उठाया। अपने हाथों को खींचकर लम्बा करना चाहा। इतनी मशक्कत मानो अचानक उसके पैरों की लम्बाई बढ़ जाएगी। हाथों की लम्बाई भी इतनी ज्यादा कि उसके बराबर दुनिया में कोई लम्बा ना हो सके और जिन्दगी के सबसे ऊंचे आले तक कोई कभी ना पहुंच सके। अचानक उसने महसूस किया कि वाकई उसका कद बढ़ने लगा है। उसने अपने इश्क को अपने दिल के रैपर में लपेटकर उस आले में रख दिया। ऊपर से कुछ पुआल भर दिया ताकि उसकी सबसे कीमती चीज पर किसी को कोई नजर ही ना पड़े। काम हो जाने के बाद वो वापस अपने कद में लौट आया यही कोई पांच फीट ग्यारह इंच। वो हमेशा कहती थी कि एक इंच कम क्यों? पूरे छह क्यों नहीं। ऐसा कहकर वो अक्सर हंस देती? लड़का उसकी बात सुनते हुए अपने कद की एक इंच कम लम्बाई के बारे में सोचने लगता। लड़की कहती,तुम पांच फीट के होते तब भी मुझे तुमसे इतना ही प्यार होता पगले। लड़का खुश हो जाता। उनका प्रेम किशोर वय का प्रेम था। वे खेतों में दिन भर घूमते। उसे लड़की के लिए सबसे ऊंची डाल पर लगे फूल तोड़ने में सबसे ज्यादा सुख मिलता था। पापा का उसे आईएएस बनाने का ख्वाब उसे खासा बोरिंग लगता। गांव के तालाब में कंकड़िया फेंकते हुए उसे इतना सुख मिलता कि उसे लगता जिन्दगी में इससे बड़ा कोई सुख ही नहीं। लड़की उसे हर बार नया निशाना बताती और उसकी कंकड़ी ठीक उसी जगह जा पहुंचती। लड़की खुश होकर नाचने लगती फिर अगले ही पल उसकी आंखें भर आतीं। लड़का पूछता, क्या हुआ? लड़की कहती, कुछ नहीं। वो फिर पूछता। लड़की का रोना बढ़ता जाता। वो उसे चुप करता रहता। और लड़की रोती जाती। सूरज डूबने को होता और लड़की आंसूं पोंछती घर की और भाग जाती। वो अकेले ही तालाब के किनारे बैठ जाता और सूरज का डूबना फिर चांद का उगना देखता रहता। वो यह कभी नहीं समझ पाया कि लड़की आखिर क्यों रो पड़ती है। हर प्रेम कहानी की तरह ये भी एक सामान्य प्रेम कहानी थी जिसमे लड़के को जाना पड़ा। पापा को और टालना मुश्किल था। उसे शहर जाकर लायक आदमी बनना था। इश्क काफी नहीं जिन्दगी के लिए। सोचते हुए उसने भीगी पलकों की गठरी में सारे ख्वाब बांधे और निकाल पड़ा। उसने लड़की को वादा किया वो जल्दी लौटेगा और उसे हमेशा के लिए ले जाएगा। तीन बरस लड़का लायक आदमी बनने में लगा रहा। लौटा तो उसने जिन्दगी के उसी आले को ढूंढा जिसमे उसने अपना इश्क रखा था। वो अपने पंजो से उचक-उचक कर जिन्दगी के सारे खानों को तलाशता फिरता लेकिन उसका ही इश्क अब उसकी पहुंच से बहुत दूर हो गया। बहुत दूर। अब वो अकेले ही तालाबों के किनारों घूमता, खेतों में वही दिन, वही खुशबू ढूंढता। ना जाने कितने बरस बीत गए। वो लायक आदमी अब किसी का पति है किसी का पिता और किसी का बेटा। उसकी आंखें अक्सर नाम रहती हैं। जिन्दगी ने उसके साथ बेईमानी की। अपने ही इश्क तक उसके हाथ क्यों नहीं पहुंचने दिए। वो धरती के ना जाने किस कोने में अब सांस लेती होगी। लड़के की आंखें भीग जाती तो उसकी पत्नी पूछती क्या हुआ? लड़का कहता आंख में तिनका चला गया शायद। जिन्दगी का तिनका। वो नहीं कह पाता।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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