तरीका जश्ने उल्फ़त का !
महक कर फूल - सा तुम ख़ुद ही भौंरों को लुभाती हो ;
जब आशिक पास आते हैं तो फ़िर क्यों भाव खाती हो !
तेरी तारीफ़ पर तुझको अगर यूँ ऐंठना ही है ;
फ़िर इतना वक़्त क्यों सजने - सँवरने पे लगाती हो !
घटा कहता हूँ सावन की तुम्हारे गेसुओं को मैं ;
कड़क कर मेरे अरमानों पे क्यों बिजली गिराती हो !
कभी कॉलेज के रस्ते पे तेरा पीछा जो करता हूँ ;
ये जब तुम जान जाती , क्यों कमर ख़ुब डगमगाती हो !
तुम्हारे दिल के दरवाज़े को कब से खटखटाता हूँ ;
रहम मुझपे दिखाकर क्यों नहीं भीतर बिठाती हो !
उजालों में तुम्हें मिलना गवारा जब नहीं मुझसे ;
तो मेरे ख़्वाब में आकर के क्यों रातें बिताती हो !
तेरे सेल फ़ोन पर तुझपे ग़ज़ल मेसेज करी थी जो ;
पढ़ाकर अपनी सखियों में क्यों तुम जलवा जमाती हो !
ख़ता भी तुम ही करती हो , तुम्हीं इंसाफ़ करती हो ;
अज़ब मुंसिफ हो सूली पे क्यों आशिक को चढ़ाती हो !
तरीका जश्ने उल्फ़त का गज़ब तुम हुस्न वालों में ;
क्यों आशिक क़त्ल कर - कर फ़ोटो एल्बम में सजाती हो !
रचयिता ~ ~ डॉ .राकेश श्रीवास्तव
विनय खण्ड - 2 , गोमती नगर , लखनऊ .
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