अभि भाई जी,
यह एक प्राणहीन मुद्दा है इसे नियमन में लाना पुनः अपने पैरों को काटना है। यदि कभी इस बात पर सदस्यों में तर्क(कुतर्क नहीं) हो तो बुरा क्या है?
सच्चाई बहुत जरूरी है, उसे किसी की वकालत की जरूरत नहीं होती। जब तक हम निष्ठावान नहीं होगें परिस्थितियों में परिवर्तन असंभव है।
मंच आपका, इच्छायें आपकी, राय हमारी,निर्णय आपका।
धन्यवाद।
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Originally Posted by abhisays
युवराज जी, सवाल यह नहीं है की ऐसा क्यों करना पड़ा, सवाल यह है की इसमें इतनी देर क्यों हो गयी? इसी मुद्दे के कारण फोरम को सबसे ज्यादा नुक्सान हुआ था.
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