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Originally Posted by yuvraj
अभि भाई जी,
यह एक प्राणहीन मुद्दा है इसे नियमन में लाना पुनः अपने पैरों को काटना है। यदि कभी इस बात पर सदस्यों में तर्क(कुतर्क नहीं) हो तो बुरा क्या है?
सच्चाई बहुत जरूरी है, उसे किसी की वकालत की जरूरत नहीं होती। जब तक हम निष्ठावान नहीं होगें परिस्थितियों में परिवर्तन असंभव है।
मंच आपका, इच्छायें आपकी, राय हमारी,निर्णय आपका।
धन्यवाद।
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मैं अभी तक बोल्ड की गयी लाइनों का मतलब नहीं समझ पा रहा हूँ...??