Re: प्रणय रस
तुम नहीँ हो साथ लेकिन याद से संत्रास तो है
हूँ अकेला
पर नही कोई गिला है
इस सफर मे
बोध ही मन का सिला है
सिलसिले टूटे सही लेकिन तुम्हारी प्यास तो है
क्या हुआ है दृगोँ को
इनको न कोई और भाता
और मन तो हर प्रहर
बस नाम तेरा गुनगुनाता
साथ छूटा क्या हुआ लेकिन कसकती फांस तो है
आ गया है समझ मे
यह जगत संयोग भर है
कठपुतलियां लेख की हैँ
सांस इनकी डोर पर है
भले क्षण भंगुर सभी कुछ मन खुला आकाश तो है ।
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Disclaimer......! "फोरम पर मेरे द्वारा दी गयी सभी प्रविष्टियों में मेरे निजी विचार नहीं हैं.....! ये सब कॉपी पेस्ट का कमाल है..."
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