Re: रूप और रुबाइयां
Quote:
Originally Posted by Dark Saint Alaick
मित्र निशांतजी ! आप कई जगह ऐसा फंसा देते हैं कि जवाब देते नहीं बनता ! फ़िराक साहब के ज़माने में तो मोबाइल था नहीं, फिर वे इस पर क्या रुबाई रचते ... अब यह काम आपके चित्र के लिए मुझे ही करना होगा ! मजबूरी है, लीजिए हाज़िर है ...
अक्स अपना सेल में देखा मैंने
आईना शायद सोच लिया मैंने
रू-ब-रू होने की तमन्ना थी तेरे
खुद को तुझमें पा लिया मैंने .
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bhai waah
maja aa gaya
alaik bhaai thanks for express service.
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घर से निकले थे लौट कर आने को
मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए
बिगड़ैल
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