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Originally Posted by dark saint alaick
मेरे विचार से श्री अरविन्द केजरीवाल में हद दर्जे का उतावलापन है ! इसी की वज़ह से सत्ता या ताकत जल्द से जल्द पा लेने की उनकी ललक बार-बार सामने आती रहती है, जो एक नेता के लिए किसी भी तरह उचित नहीं है ! पिछले दिनों आपने देखा कि बिना आगा-पीछा सोचे उन्होंने आमंत्रित किए गए मंच पर जाकर उसी राजनीतिक दल की ऎसी की तैसी कर डाली, जिसने उन्हें आमंत्रित किया था, उनके यह क्रिया-कलाप दरअसल राजनीतिक गरिमा और शुचिता के खिलाफ थे और उनके चारित्रिक दुर्गुण को उजागर कर रहे थे ! ठीक इसी तरह उनकी यह ललक उस समय भी उजागर हुई, जब उन्होंने बिना सोचे-विचारे एक श्रमिक के घर जाकर उसका काट दिया गया बिजली कनेक्शन जोड़ दिया और उसे भूल गए ! तार उन्होंने जोड़ा था, मुकदमा और सज़ा भुगतेगा वह बेगुनाह मजदूर ! उन्हें असली नेता तब माना जाता, जब वे श्रमिक के खिलाफ मुकदमा दर्ज होने का विरोध करते हुए उसके घर के बाहर धरने पर बैठ जाते, लेकिन उन्होंने तो 'चूं' तक नहीं की, क्यों ?
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मैं उस दिन के बारे में सोच रहा हूँ जब अरविन्द केजरीवाल देश के प्रधान मंत्री बन जायेंगे..और किसी अन्य देश के प्रधानमंत्री से मिलेंगे तो उनका ये बचकाना व्यवहार किस तरह की तस्वीर पेश करेगा ये....ये बहुत ही अजीब होगा.
हमें एक देश चलाने के लिए भ्रष्ट राजनीतिज्ञ, भ्रष्ट नौकरशाह, भ्रष्ट व्यापारी, भ्रष्ट उद्योगपति इन सबसे मुक्ति पानी होगी पर इसका मतलब ये नहीं है कि हमें कुशल राजनीतिज्ञों, कुशल नौकरशाहों, कुशल व्यापारी और कुशल उद्योगपतियों की आवश्यकता नहीं है..
बल्कि हमें कुशल लोगों की आवश्यकता है और रहेगी...
अरविन्द जी को कुशल राजनेता होने के सबूत देने होंगे....धैर्य, संयम और परिपक्वता दिखानी होगी...