काया मंजन क्या करे, कपडे धोई न धोई |
उजल हुआ न छूटिये, सुख नी सोई न सोई ||
कागद केरो नाव दी, पानी केरो रंग |
कहे कबीर कैसे फिरू, पञ्च कुसंगी संग ||
कबीरा सोई पीर है, जो जाने पर पीर |
जो पर पीर न जानही, सो का पीर में पीर ||
जाता है तो जाण दे, तेरी दशा न जाई |
केवटिया की नाव ज्यूँ, चडे मिलेंगे आई ||
कुल केरा कुल कूबरे, कुल राख्या कुल जाए |
राम नी कुल, कुल भेंट ले, सब कुल रहा समाई ||
कबीरा हरी के रूठ ते, गुरु के शरणे जाए |
कहत कबीर गुरु के रूठ ते, हरी न होत सहाय ||
कबीरा ते नर अँध है, गुरु को कहते और ।
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर ॥
कबीर सुता क्या करे, जागी न जपे मुरारी |
एक दिन तू भी सोवेगा, लम्बे पाँव पसारी ||
कबीर खडा बाजार में, सबकी मांगे खैर |
ना काहूँ से दोस्ती, ना काहूँ से बैर ||