Re: दुनिया का भारतीय अर्थशास्त्री
सांस में घुली ‘मिट्टी’
विलक्षण और ख्यातिप्राप्त विद्वान होने के बावजूद अमर्त्य आम आदमी से कितना गहरे तक जुड़े हैं, यह बात न केवल उनके कृतित्व में साफ झलकती है, बल्कि उनका व्यक्तित्व भी इसे दर्शाता है। कल्याणकारी अर्थशास्त्र में महिलाओं और वंचित वर्ग की आकांक्षाओं को मूर्त-रूप देने का सपना उन्होंने देखा है। उनका व्यवहार भी इसके बहुत निकट है। हर वर्ष वे कम से कम तीन बार हिंदुस्तान आते हैं। यहां आकर शांति निकेतन न जाएं, यह सम्भव नहीं है। विद्यार्थी जीवन में पिता ने एक फिलिप्स साइकिल खरीदकर दी थी। अब वह अमर्त्य जैसी ही बूढ़ी हो चुकी है। साठ वर्ष से लम्बी उम्र है उसकी। जब युवा थे तो शांति निकेतन में उस साइकिल पर खूब दौड़ लगाया करते थे। शांति निकेतन प्रवास के दौरान वह साइकिल आज भी उनके लिए वाहन का काम करती है। उम्र, व्यस्तता और मित्रों की भीड़ के चलते उस साइकिल पर पहले जैसी सवारी भले न गांठ पाएं, पर उसे देखकर स्नेह वैसा ही होता है। मौका मिले तो साइकिल पर घूमने निकल जाते हैं। आम जन-जीवन की पड़ताल करने या कहें कि पीड़ित समाज की नब्ज टटोलने। उस समय अमर्त्य का विराट व्यक्तित्व कहीं गायब हो जाता है। जब थक जाते हैं तो सड़क किनारे बनी किसी भी मामूली चाय की दुकान पर जाकर खड़े हो जाते हैं। ज्यादातर दुकानदार उन्हें पहचानते हैं, इसलिए देखते ही चाय का पानी चढ़ा देते हैं। अमर्त्य दुकान की साधारण-सी बैंच पर बैठकर या फिर खड़े-खड़े ही चाय की चुस्की लेते हैं। खाने में आज भी उन्हें बंगाली व्यंजन पसंद हैं। मिट्टी का स्वाद जीवन की सांस-सांस में घुला है।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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