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Originally Posted by anjaan
जनसेवा के लिए अपना परिवार त्याग करने की ज़रूरत नही होती.. अगर इस तरह से आज़ादी से पहले लोग सोचते तो शायद हम ghulaam ही रहते..
बस मैं यह कहना चाहता हू की आज का युवा देश के प्रति अपने कर्तव्य भूल गया है और बस पैसे कमाना ही उनका मकसद हो गया है..
छोटी छोटी चीज़ो से भारत जैसे बड़े देश में परिवर्तन नही आते और अगर हम ज़्यादा कुछ नही कर सकते तो हमे अपने वतन की बुराई करने का कोई हक़ नही है..
भारत तो हमारी माता है और माता कैसी भी हो हमेशा पुत्र के लिए और आदरणिय ही होती है.. और पुत्र को अपनी माता पर कभी शर्मिंदा नही होना चाहिए..
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भाई मेरे आप प्रायोगिक नहीं हो रहे... या संभवतः अभी वैश्विक परिस्थिति को समझ नहीं रहे |
भारत और किसी भी अन्य विकसित देश में मात्र दो ही अंतर हैं; १- धन की सार्वजानिक अनुपलब्धता (जिसे आपने लाल लें में धता बता दिया ), २- जन सामान्य का अनुशासित ना होना( इसे आपने नीली लाइन में धो दिया) |
मात्र भावनात्मक बातें करने से कुछ हासिल नहीं होता, आजादी मिल गयी साथ साल भी हो गए अब किसी को भगत सिंह बन्ने की आवश्यकता नहीं है बस सामान्य रह कर अपना दायित्व निबाह कर भी सब हो सकता है | इच्छाशक्ति ही कम हो तो...