Re: श्री योगवाशिष्ठ (3)
समाधि ऐसी है जैसे जाग्रत् से सुषुप्ति होती है, क्योंकि अज्ञानरूपी वासना के कारण सुषुप्ति से फिर जाग्रत आती है वैसे ही अज्ञानरूपी वासना से समाधि से भी जाग जाता है क्योंकि उसको वासना खैंच ले आती है । हे रामजी! तप, समाधि आदिकों से संसारभ्रम निवृत्त नहीं होता । जैसे कांजी से क्षुधा किसी की निवृत्त नहीं होती वैसे ही तप और समाधि से चित्त की वृत्ति एकाग्र होती है परन्तु संसार निवृत्त नहीं होता । जब तक चित्त समाधि में लगा रहता है तब तक सुख होता है और जब उत्थान होता है तब फिर नाना प्रकार के शब्दों और अर्थों से युक्त संसार भासता है । हे रामजी! अज्ञान से जगत भासता है और विचार से निवृत्त होता है ।
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बेहतर सोच ही सफलता की बुनियाद होती है। सही सोच ही इंसान के काम व व्यवहार को भी नियत करती है।
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