Re: श्री योगवाशिष्ठ (3)
जैसे बालक को अपनी अज्ञानता से परछाहीं में वैताल की कल्पना होती है और ज्ञानसे निवृत्त होती है वैसे ही यह जगत् अविचार से भासता है और विचार से निवृत्त होता है । हे रामजी! वास्तव में जगत् उपजा नहीं- असत्*रूप है । जो स्वरूप से उपजा होता तो निवृत्त न होता पर यह तो विचार से निवृत्त होता है इससे जाना जाता है कि कुछ नहीं बना । जो वस्तु सत्य होती है उसकी निवृत्ति नहीं होती और जो असत् है सो स्थिर नहीं रहती । हे रामजी! सत्*स्वरूप आत्मा का अभाव कदाचित् नहीं होता और असत्*रूप जगत् स्थिर नहीं होता ।
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बेहतर सोच ही सफलता की बुनियाद होती है। सही सोच ही इंसान के काम व व्यवहार को भी नियत करती है।
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