Re: आधे-अधूरे - मोहन राकेश
स्त्री : (पुरुष एक से) तुम बात समझने भी दोगे ? (बड़ी लड़कीसे) जब इनमें से किसी बात की शिकायत नहीं है तुझे, तब या तो कोई बहुत खास वजह होनी चाहिए, या...
बड़ी लड़की : या ?
स्त्री : या...या...मैं अभी नहीं कह सकती।
बड़ी लड़की : वजह सिर्फ वह हवा है जो हम दोनों के बीच से गुजरती है।
पुरुष एक : (उस ओर देख कर) क्या कहा... हवा ?
बड़ी लड़की : हाँ, हवा।
पुरुष एक : (निराशा भाव से सिर हिला कर , मुँह फिर दूसरी तरफ करता) य ह वजह बताई है इसने...हवा!
स्त्री : (बड़ी लड़की के चेहरे को आँखों से टटोलती) मैं तेरा मतलब नहीं समझी ?
बड़ी लड़की : (उठती हुई) मैं शायद समझा भी नहीं सकती (अस्थिर भाव से कुछ कदम चलती) किसी दूसरे को तो क्या, अपने को भी नहीं समझा सकती। (सहसा रुक कर) ममा, ऐसा भी होता है क्या कि...
स्त्री : कि ?
बड़ी लड़की : कि दो आदमी जितना ज्यादा साथ रहें, एक हवा में साँस लें, उतना ही ज्यादा अपने को एक-दूसरे से अजनबी महसूस करें ?
स्त्री : तुम दोनों ऐसा महसूस करते हो ?
बड़ी लड़की : कम-से-कम अपने लिए तो कह ही सकती हूँ।
स्त्री : (पल-भर उसे देखती रह कर) तू बैठ कर क्यों नहीं बात करती ?
बड़ी लड़की : मैं ठीक हूँ इसी तरह।
स्त्री : तूने जो बात कही है, वह अगर सच है, तो उसके पीछे क्या कोई-न-कोई ऐसी अड़चन नहीं है जो...
बड़ी लड़की : पर कौन-सी अड़चन ?...उसके हाथ से छलक गई चाय की प्याली, या उसके दफ्तर से लौटने में आधा घंटे की देरी-ये छोटी-छोटी बातें अड़चन नहीं होतीं, मगर अड़चन बन जाती हैं। एक गुबार-सा है जो हर वक्त भरा रहता है और मैं इंतजार में रहती हूँ जैसे कि कब कोई बहाना मिले जिससे उसे बाहर निकाल लूँ। और आखिर... ?
स्त्री चुपचाप आगे सुनने कि प्रतीक्षा करती है।
: आखिर वह सीमा आ जाती है जहाँ पहुँच कर वह निढाल हो जाता है। जहाँ पहुँच कर वह निढाल हो जाता है। ऐसे में वह एक बात कहता है।
बड़ी लड़की : कि मैं इस घर से ही अपने अंदर कुछ ऐसी चीज ले कर गई हूँ जो किसी भी स्थिति में मुझे स्वाभाविक नहीं रहने देतीं।
स्त्री : (जैसे किसी ने उसे तमाचा मार दिया हो) क्या चीज ?
बड़ी लड़की : मैं पूछती हूँ क्या चीज,तो भी उसका एक ही जवाब होता है।
स्त्री : वह क्या ?
बड़ी लड़की : कि इसका पता मुझे अपने अंदर से, या इस घर के अंदर से चल सकता है। वह कुछ नहीं बता सकता।
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