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Old 11-11-2012, 09:42 AM   #8
omkumar
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Default Re: गजलें और नज्में फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

ढाका से वापसी पर


हम के ठहरे अजनबी इतनी मदारातों के बाद
फिर बनेंगे आशना कितनी मुलाक़ातों के बाद
कब नज़र में आएगी बे-दाग़ सब्ज़े की बहार
ख़ून के धब्बे धुलेंगे कितनी बरसातों के बाद
थे बहुत बे-दर्द लम्हे ख़त्मे-दर्दे-इश्क़ के
थीं बहुत बे-मेह्*र सुब्हें मेहरबाँ रातों के बाद
दिल तो चाहा पर शिकस्ते-दिल ने मोहलत ही न दी
कुछ गिले-शिकवे भी कर लेते, मुनाजातों के बाद

उनसे जो कहने गए थे 'फ़ैज़' जाँ सदक़ा किए
अनकही ही रह गई वो बात सब बातों के बाद
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