Re: तीन सौ रामायणें :: ए.के. रामानुजन
पाताललोक में जब यह सब चल रहा था, राम धरती पर अपने सिंहासन पर विराजमान थे। महर्षि वशिष्ठ और भगवान ब्रह्मा उनसे मिलने आये। उन्होंने राम से कहा, ''हम आपसे एकांत में वार्ता करना चाहते हैं। हम नहीं चाहते कि कोई हमारी बात सुने या उसमें बाधा डाले। क्या आपको यह स्वीकार है?''
''स्वीकार है,'' राम ने कहा।
इस पर वे बोले, ''तो फिर एक नियम बनायें। अगर हमारी वार्ता के समय कोई यहां आयेगा तो उसका शिरोच्छेद कर दिया जायेगा।''
''जैसी आपकी इच्छा,'' राम ने कहा।
अब सवाल था कि सबसे विश्वसनीय द्वारपाल कौन होगा? हनुमान तो अंगूठी लाने गये हुए थे। राम लक्ष्मण से ज़्यादा किसी पर भरोसा नहीं करते थे, सो उन्होंने लक्ष्मण को द्वार पर खड़े रहने को कहा। ''किसी को अंदर न आने देना,'' उन्हें हुक्म दिया गया।
लक्ष्मण द्वार पर खड़े थे जब महर्षि विश्वामित्र आये और कहने लगे, ''मुझे राम से शीघ्र मिलना अत्यावश्क है। बताओ, वे कहां हैं?''
लक्ष्मण ने कहा, ''अभी अंदर न जायें। वे कुछ और लोगों के साथ अत्यंत महत्वपूर्ण वार्ता कर रहे हैं।''
''ऐसी कौन-सी बात है जो राम मुझसे छुपायें?'' विश्वामित्र ने कहा, ''मुझे अभी, बिल्कुल अभी अंदर जाना है।''
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