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Old 12-11-2012, 07:39 AM   #23
abhisays
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Default Re: तीन सौ रामायणें :: ए.के. रामानुजन

यहां सिर्फ़ एक भिन्न टेक्स्चर और बलाघात ही नहीं दिखता : प्रस्तोता हर जगह सीता की ओर - उनके जीवन, उनके जन्म, उनके विवाह, उनके अपहरण और वापसी की ओर - लौटने के लिए समुत्सुक है। राम और लक्ष्मण के जन्म, वनवास और रावण के साथ युद्ध पर जितने बड़े खंड हैं, उनकी बराबरी के पूरे-पूरे खंड सीता के निर्वासन, गर्भधारण, और पति के साथ पुनर्मिलाप को समर्पित हैं। इसके अलावा, एक पुरुष रावण के गर्भ से पुत्री के रूप में उनका असामान्य जन्म कथा में अनेक नयी व्यंजनाओं को ले आता है : गर्भ और संतानोत्पत्ति के प्रति पुरुष-ईर्ष्या, जो कि भारतीय साहित्य में बारंबार आने वाली एक थीम है, और पुत्रियों के पीछे लगे पिताओं - और, इस मामले में, अगम्यगमन करने वाले पिता की मृत्यु का कारण बनने वाली पुत्री - से जुड़ी भारतीय इडीपसीय थीम।16 अन्यत्र भी सीता के रावण की पुत्री होने का मोटिफ़ अनजाना नहीं है। यह जैन कथाओं की एक परंपरा (उदाहरण के लिए, वासुदेवाहिमदी) में और कन्नड़ तथा तेलुगु की लोक परंपराओं में, साथ ही साथ अनेक दक्षिणपूर्व एशियाई रामायणों में आता है। कुछ जगहों पर यह आता है कि रावण अपनी लोलुप युवावस्था में एक युवती का मर्दन करता है, जो प्रतिशोध लेने का संकल्प करती है और फिर उसका नाश करने के लिए उसकी पुत्री के रूप में पुनर्जन्म लेती है। इस तरह मौखिक परंपरा प्रसंगों के एक ऐसे, बिल्कुल अलग, समूह में भागीदारी करती प्रतीत होती है जो वाल्मीकि के यहां अज्ञात है।
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