Re: आस्तिकता के कुछ दुष्परिणाम
इसी संदर्भ में गरीबों को झूठा दिलासा देने वाला ईसा का यह प्रसिद्ध वाक्य बरबस याद आ जाता है कि 'सूई के छेद में से ऊँट निकल सकता है, पर धनी व्यक्ति स्वर्ग में नहीं जा सकता।' यानी मेरी प्यारी भेड़ों, शान्ति से इस लोक में भेड़ियों के अत्याचार सहो, क्योंकि परलोक में तो स्वर्ग तुम्हारे ही लिए सुरक्षित है!
ईश्वर और उसके विभिन्न अवतारों और देवी-देवताओं को प्रसन्न करने और उनकी कृपा प्राप्त करने के नाम पर धर्म के सारे कर्मकाण्ड, और उन्हें सम्पन्न करवाने वाले पण्डों-पुजारियों, ओझाओं और सयानों का अर्थात एक पूरा पुरोहित वर्ग विकसित हुआ, जिसकी जीविका ही इन कर्मकाण्डों, टोने-टोटकों से मिलनेवाली दक्षिणा थी। धर्म का सारा तामझाम, पूरा व्यापार ईश्वर आदि की अवधारणा पर ही आधरित है। इस तरह आस्तिकता ने ही भारतीय संदर्भ में केवल पुरोहितों या ब्राह्मणों के एक परजीवी वर्ग को जन्म दिया। उसके माध्यम से वर्ण व्यवस्था स्थापित करके पूरे समाज को वर्णों में विभाजित कर शूद्रों के साथ अमानवीय अत्याचार किए। यह वर्ण व्यवस्था ही कालक्रम में जाति व्यवस्था में परिवर्तित हुई। पूरा हिन्दू समाज सैकड़ों श्रेणियों, ऊँची-नीची जातियों में बँट गया। इस जातिवादी कोढ़ से हमारा देश आजादी के साठ साल बाद भी मुक्त नहीं हो सका है।
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