Re: छोटी मगर शानदार कहानियाँ
ईश दर्शन का सबसे सरल तरीका
एक विद्यार्थी ने पूछा – “सर, क्या हम भगवान को देख सकते हैं? हमें इसके लिए (भगवान के दर्शन) क्या करना होगा?”
ईश्वर के दर्शन व्यक्ति के अपने कार्यों से संभव होता है. प्राचीन काल में इसे तपस्या कहा जाता था. बालक ध्रुव ने यह अपनी पूरी विनयता और विनम्रता से हासिल किया. जब ईश्वर उनकी प्रार्थना से प्रकट नहीं हुए तब भी उन्होंने विश्वास और विनम्रता नहीं छोड़ी और अंततः ईश्वर को उन्हें दर्शन देना ही पड़ा.
विद्वान परंतु अहंकारी राजा रावण ने भी भगवान शिव के दर्शन हेतु तपस्या की. वे सफल नहीं हुए. उनकी तपस्या में विनम्रता नहीं थी, बल्कि घमंड भरा था. क्रोध से उन्होंने भगवान से पूछा कि उनकी तपस्या में क्या कमी थी.
और, जब भगवान शिव ने रावण को दर्शन नहीं दिए तो अंततः उसने अपने सिर को एक-एक कर काट कर बलिदान देना प्रारंभ कर दिया. इसे देख भगवान शिव भी पिघल गए और प्रकट हो गए.
कर्नाटक में मैंगलोर और मणिपाल के पास एक छोटा सा शहर है उडिपि (जहाँ कुछ समय के लिए आदि शंकराचार्य ने निवास किया था और जहाँ से दुनिया को डोसा बनाने की कला मिली). वहाँ पर कनकदास नामक एक प्रसिद्ध मंदिर है. कहानी यह है कि प्राचीन काल में कनकदास नामक एक शूद्र वहाँ रहता था जिसे कृष्ण मंदिर में जाने की अनुमति नहीं थी. वह नित्य ही मंदिर के पीछे जाकर जाली से कृष्ण भगवान की मूर्ति का दर्शन पीछे से करता था.
एक दिन भगवान की मूर्ति 180 अंश के कोण में घूम गई और अपने भक्त को उसने दर्शन दे दिया! आज भी वह मूर्ति मंदिर में इसी रूप में विद्यमान है! कनकदास की भक्ति और समर्पण से उसे ईश्वर दर्शन हुआ.
सवाल यह है कि इस घोर कलियुग में आखिर क्या किया जाए कि ईश्वर का आशीर्वाद मिले? क्या कोई तरीका है जिससे भगवान के दर्शन हों? इन प्रश्नों के अपने हिसाब से हर एक के कई उत्तर हो सकते हैं परंतु एक बेहद आसान, मितव्ययी, सुनिश्चित तरीका यह है (क्या इसे आधुनिक कलियुग में फैशनेबुल विधियों में से एक नहीं माना जाना चाहिए?) कि आप अपने माता-पिता व बुजुर्गों का खयाल रखें. आपके अभिभावक ईश्वर के जीवित स्वरूप हैं और उनका ध्यान रखना ही ईश्वर दर्शन का आसान और सुनिश्चित तरीका है.
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