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Originally Posted by libya
बशीर बद्र की रचना
कभी यूँ भी आ मेरी आँख में के मेरी नज़र को ख़बर न हो
मुझे एक रात नवाज़ दे मगर उसके बाद सहर न हो
वो बड़ा रहीम-ओ-करीम है मुझे ये सिफ़त भी अता करे
तुझे भूलने की दुआ करूँ तो दुआ में मेरी असर न हो
कभी दिन की धूप में झूम के कभी शब के फूल को चूम के
यूँ ही साथ साथ चलें सदा कभी ख़त्म अपना सफ़र न हो
मेरे पास मेरे हबीब आ ज़रा और दिल के क़रीब आ
तुझे धड़कनों में बसा लूँ मैं के बिछड़ने का कोई डर न हो
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शुक्रिया मित्र , बशीर साहब को पढ़वा कर मेरी यादेँ ताजा कर दीँ । बशीर बद्र ऐसी अजीम शख्यिसत हैँ जो अलीगढ़ यूनिवर्सिटी मेँ जब m.a. की शिक्षा ग्रहण कर रहे थे तब b. A. मेँ उनकी लिखी उर्दू पोयट्री उसी यूनिवर्सिटी के कोर्स मेँ पढ़ायी जाती थी ।