Re: अंग्रेजी क्यों रोना-धोना मचाती है ?
03 दिसंबर, 2010 को उक्त प्रतिष्ठित अंग्रेजी दैनिक में छपे उपर्युक्त लेखों का लब्बोलुबाब यह है कि देश में हिंदी उतनी "पॉपुलर" नहीं है, जितनी इंगलिश है और दूसरी बात यह कि भारतीय संविधान और राजभाषा अधिनियम (ऑफिसियल लैंग्वेज एक्ट) के अंतर्गत बनाई गई राजभाषा नीति बस इसलिए है कि हिंदी-पट्टी (हिंदी-बेल्ट) के हजारों लोगों के लिए नौकरियाँ सुनिश्चित की जा सके! और तो और, उनको काम पर बनाए रखने के लिए उनपर करोड़ों रुपए खर्च किए जाते हैं! इसलिए हिंदी राष्ट्र की संपर्क भाषा बनने के लायक हरगिज नहीं है!
अपनी मान्यताओं को बल देने के लिए इन दोनों लेखों की प्रबुद्ध लेखिका ने सिर्फ़ उन्हीं लोगों को उद्धृत (कोट) किया है, जो हिंदी के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रस्त (बायस्ड) हैं और जानबूझकर हिंदी को संपर्क भाषा के रूप में स्वीकार नहीं करना चाहते हैं. आइए, इन लेखों से कुछ उदाहरणों को लें और उनकी विवेकसम्मत विवेचना करें. यहाँ पहले लेख से बात शुरू करते हैं. पहले लेख के आरंभ में ही यह कहा गया है कि भारत सरकार राजभाषा हिंदी के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए करोड़ों रुपए खर्च करती है, जबकि राजभाषा संकल्प, 1968 में यह कहा गया है कि आठवीं अनुसूची की सभी भाषाओं के संपूर्ण विकास के लिए ठोस उपाय किये जायें.
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