Re: अंग्रेजी क्यों रोना-धोना मचाती है ?
इस संदर्भ में मद्रास विश्वविद्यालय के तमिल विभाग के एक प्रोफेसर को उद्धृत (कोट) किया गया है, जिनका कहना है कि हिंदी के बजट का दसवाँ हिस्सा भी शेष भाषाओं को नहीं मिलता है. लेख में आगे बताया गया है कि राजभाषा हिंदी को वर्ष 2009 में लगभग 36 (छत्तीस) करोड़ रुपए का सालाना बजट आबंटित किया गया. इसके उलट, नैशनल इंस्टीच्यूट ऑफ कम्युनिकेबल डिजिजेज का बजट 25 (पच्चीस) करोड़ रुपए, नैशनल आर्काईव्ज ऑफ इंडिया का बजट 20 (बीस) करोड़ रुपए और सेंट्रल ड्रग स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाईजेशन का बजट 32 (बत्तीस) करोड़ रुपए था.
यहाँ यह देखिए कि भाषाओं के बजटों की तुलना आपस में नहीं करके, हिंदी के बजट की तुलना गैर-भाषायी मदों से करके हिंदी पर हो रहे खर्च को निरर्थक साबित करने की कोशिश की गई है. दूसरी तरफ, यह तथ्य स्पष्ट करना अनिवार्य है कि राजभाषा पर व्यय गृह मंत्रालय, भारत सरकार का राजभाषा विभाग करता है और इसका उद्देश्य भारत सरकार तथा उसके अधीनस्थ मंत्रालयों, विभागों, कार्यालयों, राष्ट्रीयकृत बैंकों, उपक्रमों, उद्यमों, सार्वजनिक कंपनियों आदि में राजभाषा हिंदी का प्रयोग बढ़ाना है और इस प्रकार राजभाषा अधिनियम के प्रावधानों का अनुपालन सुनिश्चत करवाना है.
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