Re: अंग्रेजी क्यों रोना-धोना मचाती है ?
यहाँ यह फिर बता दें कि राजभाषा नीति और नियमों में कहीं भी किसी भी प्रांत या प्रांतीय भाषा के महत्व और गरिमा को कमतर नहीं आंका गया है. कहने की आवश्यकता नहीं कि भारत की विशाल आबादी आज भी अंग्रेजी से खौफ़ खाती है. आज रेलवे टिकट, रिजर्वेशन फॉर्म; बैंकों/कार्यालयों के विभिन्न फॉर्म; मंत्रालयों, विभागों, बैंकों, कार्यालयों, संस्थानों, संगठनों, संस्थाओं, कंपनियों आदि के नाम इत्यादि सिर्फ़ अंग्रेजी में नहीं, बल्कि हिंदी और स्थानीय भाषाओं में दिखते हैं तो यह इन्हीं राजभाषा नीति और नियमों के बूते संभव हो पाया है. अंग्रेजी के साथ-साथ, हिंदी में भी प्रश्नपत्र पाने और हिंदी में उत्तर लिखने और हिंदी में साक्षात्कार देने का अवसर और संवैधानिक अधिकार भी इसी राजभाषा नीति के कारण संभव हो पाया है.
राजभाषा हिंदी के ख़िलाफ़ हायतौबा मचाने वाले लोगों को यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारा देश पहले भारत है, बाद में इंडिया. और उन्हें सिर्फ़ अंग्रेजी जानने वाले लोगों के इकहरे दृष्टिकोण से हिंदी की हैसियत नहीं आंकनी चाहिए. इस देश में आज भी अंग्रेजी बोलने वाले लोगों की तादाद सिर्फ़ तीन-चार प्रतिशत के आस-पास है. शेष आबादी के पक्ष को भी देखना अनिवार्य है, जिनके लिए अंग्रेजी अनजानी है और हिंदी और स्थानीय भाषाएँ ही सरकारी दफ्तरों आदि में उनकी तारणहार बनती हैं!
__________________
बेहतर सोच ही सफलता की बुनियाद होती है। सही सोच ही इंसान के काम व व्यवहार को भी नियत करती है।
|