Re: अंग्रेजी क्यों रोना-धोना मचाती है ?
दरअसल, सरकारी कामकाज में हिंदी को कठिन और जटिल बताने वाले लोगों की समस्या यह है कि वे फाईलों/नोटिंगों में हरदम नकल करके काम चला लेना चाहते हैं. और इसलिए हिंदी में मूल कार्य सृजित नहीं करना चाहते. अब तो कंप्यूटर-युग में कट-कॉपी-पेस्ट का कल्चर इतनी तेजी से चल पड़ा है कि लोगों को कुछेक पृष्ठों की मूल टिप्पणी या पत्र तैयार करने में भी दिक्कत महसूस होती है!
लेकिन इस कट-कॉपी-पेस्ट कल्चर के कारण, हिंदी की बात ही छोड़िए, अंग्रेजी जैसी एलिट भाषा की शुद्धता, सौष्ठव और सौंदर्य का बुरा हाल हो गया है! दस पंक्तियों के नोट या पत्र या फिर ई-मेल में भी पाँच-दस गलतियाँ मिल जाए तो अब आश्चर्य नहीं होता. फिर अंग्रेजी का रौब झाड़ने की मानसिकता और कट-कॉपी-पेस्ट कल्चर के कारण अंग्रेजी भाषा लंबे-लंबे लच्छेदार वाक्यों, लैटिन मुहावरों, दुहरावग्रस्त वाक्य-विन्यासों, कॉमन एररों और एक बार में बिना शब्दकोश के समझ में नहीं आने वाली दुर्बोध शब्दावलियों (जारगनों) से स्वयं को मुक्त नहीं कर पा रही है. इस कारण वह हिंदी की तुलना में आम आदमी के करीब नहीं आ पा रही है. और इसी कारण हिंदी आम आदमी की पहली पसंद बनी रहेगी.
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बेहतर सोच ही सफलता की बुनियाद होती है। सही सोच ही इंसान के काम व व्यवहार को भी नियत करती है।
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