Re: जीवन्मुक्तलक्षण वर्णन
यह अनित्य रूप है | चन्द्रमा तेरे में शीतलता करता है, सूर्य दाहक होते हैं, तीर्थ आदिक पवित्र स्थान हैं और पापमय अपवित्र स्थान हैं परन्तु तू सब में एक समान ज्यों का त्यों रहता है और वृक्ष को बढ़ने और ऊँचे होने की सत्ता तू ही देता है | अपनी महिमा को तू आप ही जाने और कोई तेरी महिमा पा नहीं सकता | तू निष्किञ्चन अद्वैत है, सबको धार रहा है और सबका अर्थ तुझसे ही सिद्ध होता है | जल नीचे को जाता है और तू सबसे ऊँचा है और विभु है | अनेक पदार्थ तेरे में उत्पन्न होते हैं और नष्ट हो जाते हैं पर तू सदा ज्यों का त्यों रहता है | जैसे अग्नि से चिनगारे उपजते और अग्नि ही में लीन हो जाते हैं, तैसे ही तेरे में अनन्त जगत् उपजते और लीन होते हैं और तू सदा ज्यों का त्यों रहता है जो तुझको शून्य कहते हैं वे मूढ़ हैं | हे राजन! ऐसा आकाश कौन है सो भी सुनो | ऐसा आकाश आत्मा है जो चैतन्य आकाश है और जिसमें अनन्त जगत् उत्पन्न और लीन हो जाते हैं |
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बेहतर सोच ही सफलता की बुनियाद होती है। सही सोच ही इंसान के काम व व्यवहार को भी नियत करती है।
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