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Old 01-12-2012, 08:18 AM   #9
ravi sharma
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Default Re: जीवन्मुक्तलक्षण वर्णन

मन्त्री ने कहा, हे कोयल! तुम कमल को देखकर क्या प्रसन्न होते हो? प्रसन्न तो तब हो जब बसन्तऋतु हो पर यह तो वर्षाकाल का समय है-यह फूल ओलों से नष्ट हो जावेंगे | राजन्! कोयलरूपी जो जिज्ञासु हैं उनको यह उपदेश है हे जिज्ञासु! जो सुन्दर पदार्थ तुमको दृष्ट आते हैं इनको देखकर तुम क्यों प्रसन्न होते हो? प्रसन्न तो तब हो जो यह सत्य हों पर यह तो मिथ्या हैं और अविद्या के रचे हैं | तुम क्यों प्रसन्न होते हो? अपने कुल में जा बैठो और अज्ञानी का संग छोड़ दो | जैसे कौवा हंसों में जा बैठता है तो भी उसका चित्त गन्दगी के भोजन में होता है और हंस का आहार जो मोती है उन मोतियों की ओर देखता भी नहीं, तैसे ही अज्ञानी जीव कदाचित् सन्तों की संगति में जा भी बैठता हे तो भी उसका चित्त विषयों की ओर ही भ्रमता फिरता है और स्थिर नहीं होता |
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बेहतर सोच ही सफलता की बुनियाद होती है। सही सोच ही इंसान के काम व व्यवहार को भी नियत करती है।
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