Re: जीवन्मुक्तलक्षण वर्णन
जैसे कोयल का बच्चा कौवे को माता-पिता जानकर उनमें जा बैठता है तब उनकी संगति से यह भी गन्दगी के भोजन करनेवाला हो जाता है | इससे कोयल उसको बर्जन करते हैं कि रे बेटा! तू कौवे की संगति मत बैठ, अपने कुल में बैठ, क्योंकि तेरा भी नीच आहार हो जावेगा, तैसे ही जिज्ञासु जो अज्ञानी का संग करता है तो उसके अनुसार भी विषयों की तृष्णा उत्पन्न होती है तब उसको बर्जन करते हैं कि रे जिज्ञासु! तू मूर्ख अज्ञानियों में मत बैठ, अपना कुल जो सन्तजन हैं उनमें बैठ | जैसे कोयल के बच्चे को कौवे सुख देनेवाले नहीं होते, तैसे ही मूर्ख तुझको सुख देनेवाले नहीं होंगे | मन्त्री फिर कहने लगा, अरी चील! तू क्यों हंस की रीत करती है? तू भी बहुत ऊँचे उड़ती है परन्तु हंस का गुण तेरे में कोई नहीं | जब तू माँस को पृथ्वी पर देखती है तब वहाँ गिर पड़ती है और हंस नहीं गिरते, तैसे ही जो मूर्ख हैं वे सन्तों की नाईं ऊँचे कर्म भी करते हैं परन्तु विषयों को देखकर गिरते हैं पर सन्त नहीं गिरते तो मूर्ख सन्तों की रीत कैसे करें |
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बेहतर सोच ही सफलता की बुनियाद होती है। सही सोच ही इंसान के काम व व्यवहार को भी नियत करती है।
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