Re: जीवन्मुक्तलक्षण वर्णन
हे देव! हम इसी शरीर से दृश्य देखने जावे और जब यह शरीर चलने से रहित हो तब मन्त्र सत्ता से जावें पर जहाँ मन्त्र की भी गम नहीं वहाँ सिद्धि से जावें और जहाँ सिद्धि की भी गम नहीं वहाँ मन के वेग से जावें और मृतक भी न हों | यह वर हमको दो | हे रामजी! जब इस प्रकार राजा ने कहा तब अग्नि ने कहा कि ऐसे ही होगा | इस प्रकार कहकर अग्नि अन्तर्धान हो गये | जैसे समुद्र से तरंग उठकर फिर लय हो जावे तैसे ही अग्नि अन्तर्धान हो गये | जब राजा विपश्चित् वर पाकर चलने को समर्थ हुआ तब जितने मन्त्री और मित्र थे वे रुदन करने लगे और बोले, हे राजन्! तुमने यह क्या निश्चय किया है? ईश्वर की माया का अन्त किसी ने नहीं पाया इससे तुम अपने स्थान को चलो , यह क्या निश्चय तुमने धारा है? हे रामजी! इस प्रकार मन्त्री कहते रहे परन्तु राजा ने उनको आज्ञा देकर एक एक दिशा के समुद्र में प्रवेश किया और चारों दिशाओं में चारों राजाओं ने गमन किया पर जो बड़े बड़े शक्तिमान् मन्त्रीगण थे वे सात ही चले | तब राजा मन्त्रशक्ति से समुद्र को लाँघ गया |
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बेहतर सोच ही सफलता की बुनियाद होती है। सही सोच ही इंसान के काम व व्यवहार को भी नियत करती है।
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