Re: जीवन्मुक्तलक्षण वर्णन
हे रामजी! ज्ञानी और अज्ञानी की चेष्टा तो तुल्य भासती है परन्तु ज्ञानी के निश्चय में कुछ और है और अज्ञानी के निश्चय में और है | जिसका हृदय शीतल हुआ है वह ज्ञानवान् है और जिसका हृदय जलता है वह अज्ञानी है | वह बाँधा हुआ है और ज्ञानवान् का शरीर चूर्ण हो अथवा उसे राज्य प्राप्त हो तो भी उसको रागद्वेष नहीं उपजता, वह सदा ज्यों का त्यों एकरस रहता है | वह जीवन्मुक्त है परन्तु यह लक्षण उसका कोई जान नहीं सकता वह आपही जानता है शरीर को दुःख और सुख भी प्राप्त होता है, मरता और रुदन भी करता है और हँसता, लेता और देता भी है और इससे लेकर सब चेष्टा करता दृष्टि आता है पर वह अपने निश्चय में न दुःखी होता है, न सुखी होता है, न देता है और न लेता है-सदा ज्यों का त्यों रहता है | हे रामजी! व्यवहार तो उसका भी अज्ञानी की नाईं ही दृष्टि आता है परन्तु हृदय से उसका निश्चय होता है और अद्भुत पद में स्थित रहता है कदाचित् नहीं गिरता | उसका परम उदित रूप होता है और रागसहित भी दृष्टि आता है परन्तु हृदय से राग किसी में नहीं करता, क्रोध करता भी दृष्टि आता है परन्तु उसको क्रोध कदाचित् नहीं होता |
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बेहतर सोच ही सफलता की बुनियाद होती है। सही सोच ही इंसान के काम व व्यवहार को भी नियत करती है।
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