Re: जीवन्मुक्तलक्षण वर्णन
उसके निश्चय में सब आकाशरूप हैं, जगत् कुछ बना नहीं-भ्रममात्र है जैसे आकाश में नीलता भ्रममात्र है और दूर नहीं होती तैसे ही यह जगत् भ्रम से भासता है परन्तु है नहीं | जैसे आकाश में नाना प्रकार के तरुवरे भासते हैं तैसे ही आत्मा में जगत् भासता है और जैसे काष्ठ की पुतली काष्ठरूप होती है, तैसे ही जगत् भ्रमरूप है | जो कुछ भ्रम से भिन्न भासता है वह सब भविष्यनगर में असत्य है और जो कुछ तुम्हें दृष्टि आता है सो कुछ नहीं केवल सर्व कलना से रहित, शुद्धसंवित जड़ता बिना मुक्त स्वभाव एक अद्वैत आत्मसत्ता स्थित है और केवल आकाशरूप है, उसमें जगत् भी वही रूप है और पाषाण की शिला वत् घन मौन है | तुम भी उसी रूप में स्थित हो रहो |
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बेहतर सोच ही सफलता की बुनियाद होती है। सही सोच ही इंसान के काम व व्यवहार को भी नियत करती है।
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