Re: जीवन्मुक्तलक्षण वर्णन
उसमें आगे एक शून्य नक्षत्र था सो महाशून्य था जहाँ पृथ्वी, जल आदिक तत्त्व कोई न था, एक शून्य आकाश है जहाँ न कोई स्थावर पदार्थ है, न कोई जंगम पदार्थ है, न कोई उपजे है, न कभी मिटे है उसको भी उन्होंने देखा | इसी प्रकार सम्पूर्ण भूगोल को उन्होंने देखा | रामजी ने पूछा, हे भगवन्! भूगोल क्या है, किसके आश्रय है और उसके ऊपर क्या है? वसिष्ठजी बोले, हे रामजी! जैसे गेंद होता है, तैसे भूगोल है और संकल्प के आश्रय है | सब ओर उसके आकाश है और सूर्य, चन्द्रमा, नक्षत्र सहित चक्र फिरता है | हे राम जी! यह कोई वस्तु बुद्धि से नहीं बनी संकल्प से बनी है जो वस्तु बुद्धि से बनी होती है सो क्रम से स्थित होती है और यह तो विपर्ययरूप से स्थित है | पृथ्वी के चहुँफेर दशगुण जल है उससे परे दशगुणी अग्नि है, उसके उपरान्त दशगुणा वायु है और फिर ब्रह्माण्ड खप्पर है | वह खप्पर एक अधः को और एक ऊर्ध्व को गया है और उसके मध्य में जो पोल है वह आकाश है जो वज्रसार की नाईं है और अनन्तकोटि योजन का उसका विस्तार है |
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बेहतर सोच ही सफलता की बुनियाद होती है। सही सोच ही इंसान के काम व व्यवहार को भी नियत करती है।
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