Re: जीवन्मुक्तलक्षण वर्णन
वहाँ जो देश, काल और क्रिया का बिचरना होता है सो इसके ही समान होता है | जैसे नामरूप आकार यहाँ होते हैं, जैसे बिम्ब का प्रतिबिम्ब तुल्य ही होता है और जैसे एक ही आकार का एक प्रतिबिम्ब जल में होता है और द्वितीय दर्पण में होता है सो दोनों तुल्य हैं, तैसे ही दोनों ब्रह्माण्ड एक समान हैं और ब्रह्मरूपी आदर्श में प्रतिबिम्बित होते हैं | इस कारण यह मृग विपश्चित् है इसी निश्चय को धारे हुए है यह और वह दोनों तुल्य हैं सो पहाड़ की कन्दरा में हैं | रामजी ने पूछा, हे भगवन्! वह विपश्चित् अब कहाँ है और उसका क्या आचार है? अब मैं जानता हूँ कि उसका कार्य हुआ है | अब चलकर मुझको दिखाओ और उसको दर्शन देकर अज्ञानफाँस से मुक्त करो | इतना कहकर वाल्मीकिजी बोले, हे अंग! जब रामजी ने इस प्रकार कहा तब मुनिशार्दूल वशिष्ठजी बोले, हे रामजी! जहाँ तुम्हारा लीला का स्थान है और तुम क्रीड़ा करते हो उस ठौर में वह मृग बाँधा हुआ है | यह तुमको तिरगदेश के राजा ने दिया है सो बहुत सुन्दर है इस कारण तुमने उसे रखा है |
__________________
बेहतर सोच ही सफलता की बुनियाद होती है। सही सोच ही इंसान के काम व व्यवहार को भी नियत करती है।
|