Re: जीवन्मुक्तलक्षण वर्णन
शरीररूपी पत्र पर अहंतारूपी बरफ का कारण स्थित है ,बोधरूपी सूर्य के उदय हुए न जानोगे कि वह कहाँ गया बोध बिना अहंता नष्ट नहीं होती चाहे कीचड़ में रहे और चाहे पहाड़ में जावे, चाहे घर में रहे और चाहे स्थल में रहे, चाहे स्थूल हो और चाहे सूक्ष्म हो चाहे निराकार हो और चाहे रूपान्तर को प्राप्त हो, चाहे भस्म हो और चाहे मृतक हो, चाहे दूर हो अथवा निकट हो जहाँ रहेगा वहीं अहंता इसके साथ है | हे रामजी! संसाररूपी वट का बीज अहंता है उसी से सब शाखा फैली है सब अर्थों का कारण अहंता है, जबतक अहंता है तबतक दुःख नहीं मिटता और जब अहंभाव नष्ट हो तब परमसिद्धि की प्राप्ति हो | हे रामजी! जो कुछ मैंने उपदेश किया है उसको भली प्रकार विचारकर उसका अभ्यास करो तब संसाररूपी वृक्ष का बीज जल जावेगा और आत्मपद की प्राप्ति होगी |
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बेहतर सोच ही सफलता की बुनियाद होती है। सही सोच ही इंसान के काम व व्यवहार को भी नियत करती है।
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