Re: जीवन्मुक्तलक्षण वर्णन
जब शरीर का त्याग करता है तब आकाश में उड़ता है और प्राणवायु उड़कर जो आकाश में शून्यरूप वायु है उससे जा मिलता है | वहाँसबको अपनी-अपनी वासना के अनुसार सृष्टि भासि आती है और अपनी सृष्टि लेकर इस प्रकार उड़ते हैं जैसे वायु गन्ध को ले जाती है सो ही मुझको सूक्ष्मदृष्टि से उड़ते भासते है | हे रामजी! स्थूलदृष्टि से लिंगशरीर नहीं भासता, सूक्ष्मदृष्टि से दीखता है | जिस पुरुष को सूक्ष्मदृष्टि से लिंगशरीर देखने की शक्ति है और ज्ञान से रहित है वह भी मेरे मत में मूर्ख और पशु है | हे रामजी! जब मनुष्य वासना का त्याग करता है-अर्थात् इस अहंकार को कि मैं हूँ त्याग करता है तो आगे विश्व नहीं देता केवल निर्विकल्प ब्रह्म भासता है और उसके प्राण नहीं उड़ते वहीं लीन हो जाते हैं, क्योंकि उसका चित्त अचित्त हो जाता है | जबतक अहंकार का संयोग है तबतक विश्व भी चित्त में स्थित है | जैसे बीज में वृक्ष और तिलों में तेल स्थित होता है तैसे ही उसके हृदय में विश्व स्थित है | जैसे मृत्तिका में बड़े छोटे बासन, लोहे में सुई और खड़ग और बीज में वृक्षभाव स्थित है चैतन्य अथवा जड़ हो तैसे ही यह
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बेहतर सोच ही सफलता की बुनियाद होती है। सही सोच ही इंसान के काम व व्यवहार को भी नियत करती है।
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