लड़की
किसी पे हुस्न की दौलत , किसी पे थोड़ी कड़की है ;
जहां में सबसे उम्दा फिर भी नेमत सिर्फ़ लड़की है .
न जाने कौन सी शय ले के आयी है ये दुनिया में ;
सभी मर्दों के सीने में ये ख्वाहिश बन के धड़की है .
जहाँ पहुँचा दे किस्मत , पर नशा सबमें ही होता है ;
शराब आख़िर शराब ही है , दुकां भर छोटी - बड़की है .
कुछ इसकी बेबसी वरना ये काटे कान मर्दों के ;
बस अपने जिस्म के चुगलीपने से सहमी हड़की है .
है गहरी झील सी आँखों में फ़िर भी जादुई पानी ;
जो डूबे इसमें जितना , उसमें उतनी प्यास भड़की है .
मैं छज्जे से जिसे हूँ ताकता , कुछ तो इशारा दे ;
क्या उसके दिल की कुण्डी भी मेरी नज़रों से खड़की है .
मुझे तो लगता , वो भी याद करती मुझको रह - रह के ;
तभी तो आँख अक्सर मेरी ख़ुब जोरों से फड़की है .
रचयिता~~ डॉ .राकेश श्रीवास्तव
विनय खण्ड - 2 , गोमती नगर , लखनऊ .
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