Re: जीवन्मुक्तलक्षण वर्णन
जैसे समुद्र में तरंग उठते हैं सो जलस्वरूप है तैसे ही विश्व आत्मस्वरूप है और जैसे चितेरा काष्ठ में कल्पना करता है कि इतनी पुतलियाँ निकलेंगी और जैसे मृत्तिका में कुम्हार घटादिक कल्पता है कि इसमें इतने पात्र बनेंगे पर काष्ठ और मृत्तिका में तो कुछ नहीं, ज्यों का त्यों काष्ठ है और ज्यों की त्यों मृत्तिका है परन्तु उनके मन में आकार की कल्पना है, तैसे ही आत्मा में संसाररूपी पुतलियाँ मन कल्पता है जब मन का संकल्प निवृत्त हो तब ज्यों का त्यों आत्मपद भासे | जैसे तरंग जलरूप है, जिसको जल का ज्ञान है तो तरंग भी जलरूप जानता है और जिसको जल का ज्ञाननहीं सो भिन्न भिन्न तरंग के आकार देखता है, तैसे ही जब निस्संकल्प होकर स्वरूप को देखे तब फुरने में भी आत्मसत्ता भासेगी |
__________________
बेहतर सोच ही सफलता की बुनियाद होती है। सही सोच ही इंसान के काम व व्यवहार को भी नियत करती है।
|