Re: छुआ आसमान : डॉ. अब्दुल कलाम
हम अपने पुश्तैनी घर में रहते थे, जो उन्नीसवीं सदी के मध्य में, चूना-पत्थर और र्इंटों से बना था। यह मकान काफी बड़ा था और रामेश्वरम में मस्जिद वाली गली में स्थित था। प्रसिद्ध शिव मंदिर, जिसके कारण रामेश्वरम एक पवित्र तीर्थ-स्थल बना, हमारे घर से लगभग दस मिनट की पैदल-दूरी पर था। हमारा मुहल्ला मुस्लिम-बहुल था और इसका मस्जिद वाली गली नाम, यहां की एक बहुत पुरानी मस्जिद पर रखा गया था। मुहल्ले में दोनों धर्मों के पूजा-स्थल अगल-बगल होने की वजह से हिंदू-मुस्लिम बड़े प्यार से, पड़ोसियों की तरह मिल-जुलकर रहते थे। मंदिर के बड़े पुजारी पं. लक्ष्मण शास्त्री मेरे पिताजी के घनिष्ठ मित्र थे। अपने शुरुआती बचपन की सबसे ताजा याद मुझे इन दोनों की है। दोनों अपने पारंपरिक पहनावे में आध्यात्मिक चर्चाएं करते रहते थे। दोनों की सोच में समानता उनके भजन-पूजन के रीति-रिवाज की भिन्नता से कहीं ऊपर थी।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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